राज्य सूचना आयोग के आदेश की खुली अवहेलना: करोड़ों की वसूली अटकी, जवाबदेह अफसरों ने सरकार को लगाया करोड़ों का चूना…….
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संभाग ब्यूरो: दुर्गा गुप्ता | मनेंद्रगढ़/रायपुर
क्या सरकार खुद अपने ही बनाए कानून की धज्जियाँ उड़ा सकती है? क्या जवाबदेही सिर्फ आम जनता की होती है? छत्तीसगढ़ से सामने आई एक चौंकाने वाली जानकारी ने एक बार फिर आरटीआई एक्ट की गंभीरता और सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता अशोक श्रीवास्तव का बड़ा खुलासा
मनेंद्रगढ़ निवासी आरटीआई कार्यकर्ता अशोक श्रीवास्तव ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत राज्य सूचना आयोग, छत्तीसगढ़ से वर्ष 2020 से फरवरी 2025 तक की जानकारी मांगी। जवाब में जो तथ्य सामने आए, वे हैरान करने वाले हैं।
2493 जन सूचना अधिकारियों पर जुर्माना — वसूली सिर्फ 286 से

राज्य सूचना आयोग के मुताबिक, 1 जनवरी 2020 से 21 फरवरी 2025 के बीच कुल 2493 जन सूचना अधिकारियों पर 4 करोड़ 81 लाख 77 हजार 188 रुपये का जुर्माना लगाया गया। इसका कारण था — सूचना देने में देरी, अधिनियम की अवहेलना या जवाबदेही से बचना।
लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस जुर्माने में से सिर्फ 286 अधिकारियों से 42 लाख 31 हजार 250 रुपये की वसूली हुई। बाकी बचे 2207 अधिकारियों से अब तक 4 करोड़ 39 लाख 45 हजार 938 रुपये की वसूली नहीं की गई।
राजकोष को नुकसान, अफसरों की जवाबदेही शून्य

यह न केवल आरटीआई अधिनियम की अवहेलना है, बल्कि यह राज्य के राजस्व को सीधे तौर पर करोड़ों का नुकसान पहुंचाने वाला मामला भी है। आयोग द्वारा बार-बार सामान्य प्रशासन विभाग और वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र भेजे गए, लेकिन नतीजा सिर्फ फाइलों में धूल खाते दस्तावेज निकला।
क्या जवाबदेही से ऊपर हैं अधिकारी?
आरटीआई अधिनियम केवल जानकारी मांगने का नहीं, बल्कि जवाबदेही तय करने का भी अधिकार देता है। जब अधिकारी कानून तोड़ते हैं, तो उन पर जुर्माना लगाया जाता है। लेकिन वसूली की जिम्मेदारी उनके वरिष्ठ अधिकारियों की होती है। ऐसे में सवाल उठता है — क्या ये अधिकारी जवाबदेही से ऊपर हैं?
राज्य सूचना आयोग के आदेशों की अवहेलना क्यों?
आयोग के आदेशों के बावजूद यदि कार्रवाई नहीं होती, तो यह प्रशासनिक तंत्र की विफलता है। सरकार की चुप्पी और अफसरशाही की उदासीनता इस बात को साबित करती है कि सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी कितनी गहरी है।
मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से जवाब की उम्मीद
अब सवाल यह है — क्या मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और मुख्य सचिव इस मामले का संज्ञान लेकर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे? या यह मामला भी बाकी मामलों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा?
निष्कर्ष:
पिछले 5 वर्षों में 4.39 करोड़ रुपये की वसूली न हो पाना केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की गंभीर असफलता का प्रमाण है। अगर समय रहते सख्ती नहीं बरती गई, तो आरटीआई अधिनियम एक प्रभावी कानून नहीं, बल्कि अफसरों की मर्जी का खेल बन जाएगा — और तब लोकतंत्र की यह ताकत सिर्फ कागज़ों में सिमट जाएगी।
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