धार्मिक स्थल के समीप विस्फोट, रास्ता जाम — डीबीएल की मनमानी से जनता परेशान” आस्था के केंद्र पर आघात!
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धरमजयगढ़-पत्थलगांव मुख्य मार्ग पर भारतमाता परियोजना के तहत निर्माण कार्य कर रही कंपनी डीबीएल की लापरवाहियों ने क्षेत्र के लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सिसरिंगा गाँव में स्थित माँ बंजारी मंदिर के करीब महज 100 मीटर दूरी पर विस्फोट कर पत्थर तोड़े जा रहे हैं, जिससे न केवल धार्मिक आस्था को ठेस पहुँच रही है, बल्कि मंदिर की दीवारों और छत को भी नुकसान हो रहा है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, विस्फोट के समय मुख्य मार्ग को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है, जिससे राहगीरों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
डीबीएल द्वारा पर्यावरण और वन विभाग के नियमों की भी खुलेआम अवहेलना की जा रही है। नियमों को ताक पर रखकर वैकल्पिक मार्गों का निर्माण किया गया है, जो न केवल अवैध हैं, बल्कि ग्रामीणों की जमीनों और पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचा रहे हैं।
जनता की आवाज अब बुलंद होने लगी है — क्या प्रशासन जागेगा?
पत्थर तोड़ने या निर्माण कार्यों में विस्फोट (ब्लास्टिंग) करने के लिए भारत में कई महत्वपूर्ण नियम और दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं, ताकि सुरक्षा, पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों को नियंत्रित किया जा सके !
विस्फोटक अधिनियम, 1884 और विस्फोटक नियम, 2008
विस्फोटक सामग्री को रखने, ढोने, और प्रयोग करने के लिए लाइसेंस अनिवार्य है।
केवल प्रशिक्षित और लाइसेंसधारी व्यक्ति ही ब्लास्टिंग कर सकते हैं।
विस्फोटक का भंडारण निर्धारित दूरी और सुरक्षा मानकों के अनुसार होना चाहिए।
पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) अधिसूचना, 2006
अगर कोई निर्माण कार्य या खनन कार्य धार्मिक स्थल, जनसंख्या या संवेदनशील क्षेत्रों के नज़दीक हो, तो पर्यावरणीय मंजूरी आवश्यक होती है।
पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करना अनिवार्य है।
भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के दिशा-निर्देश
IS 4081: निर्माण स्थलों पर विस्फोट की सुरक्षित प्रक्रिया और कार्यपद्धति।
नजदीकी संरचनाओं से सुरक्षित दूरी बनाना ज़रूरी है (जैसे: धार्मिक स्थल, घर, स्कूल आदि)।
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
यदि कार्य वनभूमि या उसके समीप हो, तो अलग से अनुमति आवश्यक है।
ध्वनि, धूल और कंपन के मानकों को नियंत्रित करने के निर्देश होते हैं।
स्थानीय प्रशासन और पुलिस की अनुमति
विस्फोट से पहले स्थानीय प्रशासन और पुलिस को सूचित करना आवश्यक होता है।
ट्रैफिक और जन सुरक्षा के लिए जरूरी प्रबंध करना जरूरी होता है।
धार्मिक स्थलों और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा
ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) या स्थानीय धार्मिक समितियों की अनुमति आवश्यक हो सकती है।
धार्मिक स्थलों से कम से कम 300 मीटर की दूरी पर कोई भी कंपन या विस्फोटक कार्य नहीं होना चाहिए।
यदि डीबीएल ने इन नियमों का पालन नहीं किया है, तो यह गंभीर उल्लंघन है और इसके लिए कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
“धार्मिक स्थल के पास अवैध विस्फोट, डीबीएल की मनमानी से जनजीवन अस्त-व्यस्त — नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियाँ”
धरमजयगढ़-पत्थलगांव मुख्य मार्ग पर भारतमाता परियोजना के अंतर्गत निर्माण कार्य कर रही कंपनी डीबीएल (DBL) पर अब गंभीर आरोप लगने लगे हैं। सिसरिंगा गाँव में स्थित माँ बंजारी मंदिर के पास किए जा रहे विस्फोटक कार्य से स्थानीय नागरिकों में भारी आक्रोश है।
सिसरिंगा मंदिर, जो क्षेत्र की धार्मिक आस्था का केंद्र है, उससे महज 100 मीटर की दूरी पर पत्थर तोड़ने के लिए विस्फोट किया जा रहा है। इससे न केवल मंदिर की छत और दीवारों को नुकसान हुआ है, बल्कि आस-पास के कई घरों में भी दरारें आ गई हैं।
यात्रियों को भी भारी परेशानी
विस्फोट के समय मुख्य मार्ग को बंद कर दिया जाता है, जिससे यातायात पूरी तरह ठप हो जाता है। आम नागरिकों, स्कूल बसों और आपातकालीन सेवाओं को इससे भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
कानूनों का खुला उल्लंघन
जानकारों के अनुसार, डीबीएल कंपनी द्वारा विस्फोटक अधिनियम, 1884 और विस्फोटक नियम, 2008 के तहत निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। इन नियमों के अनुसार
धार्मिक स्थलों या रिहायशी इलाकों के समीप विस्फोट करना प्रतिबंधित है !विस्फोट से पहले प्रशासन और पुलिस से अनुमति लेना आवश्यक होता है।
ब्लास्टिंग का कार्य केवल प्रशिक्षित और लाइसेंसधारी कर्मियों द्वारा किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) अधिसूचना, 2006 के अनुसार, किसी भी धार्मिक स्थल या संवेदनशील क्षेत्र के पास निर्माण से पूर्व पर्यावरणीय स्वीकृति अनिवार्य है।
वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत भी कंपन, ध्वनि और धूल नियंत्रण के सख्त निर्देश होते हैं, जिनका उल्लंघन यहां साफ दिखाई देता है।
अवैध वैकल्पिक मार्ग भी बनाए
कंपनी द्वारा निर्माण सामग्री के परिवहन के लिए कई अवैध वैकल्पिक मार्ग भी बनाए गए हैं, जो न केवल वन एवं पर्यावरण नियमों का उल्लंघन हैं, बल्कि ग्रामीणों की निजी ज़मीन को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
प्रशासन से कार्रवाई की मांग
स्थानीय लोगों ने माँग की है कि प्रशासन तत्काल संज्ञान लेकर डीबीएल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे, जिससे धार्मिक स्थलों की गरिमा बनी रहे और जनता को राहत मिले।
क्या नियमों को ताक पर रखकर परियोजनाएं चलती रहेंगी, या प्रशासन सख्ती से कदम उठाएगा?
सिसरिंगा गाँव के निवासियों के लिए माँ बंजारी मंदिर सिर्फ एक ईमारत नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और आत्मिक शांति का केंद्र है। वर्षों से यह मंदिर गाँव की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान रहा है। हर सुबह मंदिर की घंटियों की मधुर ध्वनि से लोगों का दिन शुरू होता है, लेकिन अब इस पवित्र स्थान की शांति को निर्माण कंपनी डीबीएल के धमाकों ने चीर दिया है।
धरमजयगढ़-पत्थलगांव मुख्य मार्ग पर भारतमाता परियोजना के अंतर्गत काम कर रही डीबीएल द्वारा माँ बंजारी मंदिर से मात्र 100 मीटर की दूरी पर विस्फोट किए जा रहे हैं। पत्थर तोड़ने के लिए किए जा रहे इन धमाकों ने मंदिर की दीवारों में दरारें, छत में झटके, और श्रद्धालुओं के दिलों में डर पैदा कर दिया है।
“काँप उठता है दिल जब मंदिर की घंटियों की जगह धमाके सुनाई देते हैं”
आस्था पर चोट और नियमों की अनदेखी
भारत के विस्फोटक अधिनियम, 1884, और EIA अधिसूचना, 2006 स्पष्ट रूप से बताते हैं कि किसी भी धार्मिक स्थल के पास इस प्रकार के कार्य करना न केवल अवैध है, बल्कि अनैतिक भी। फिर भी डीबीएल कंपनी ने मंदिर की गरिमा और भावनात्मक महत्व को नजरअंदाज करते हुए विस्फोट किए हैं।
धर्म, पर्यावरण और जनजीवन सबको खतरा
धमाकों से आसपास के घरों में दरारें आ गई हैं, रास्ता जाम हो जाता है, और लोग घंटों फँसे रहते हैं।
प्रशासन मौन, श्रद्धालु आक्रोशित
लोगों ने प्रशासन से कई बार गुहार लगाई है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द उपाय नहीं किया गया, तो यह सिर्फ धार्मिक स्थल की क्षति नहीं, बल्कि संस्कृति और भावनाओं की हत्या होगी।
सिसरिंगा गाँव में स्थित माँ बंजारी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हजारों ग्रामीणों की आस्था और आत्मा का केन्द्र है। इस पावन धाम के पास जब भी शंख बजते थे, गाँव में शांति और श्रद्धा का संचार होता था। लेकिन आज, वहाँ शंखों की गूंज को विस्फोटों की गड़गड़ाहट ने दबा दिया है।
भारतमाता परियोजना के तहत काम कर रही डीबीएल कंपनी ने मंदिर से मात्र 100 मीटर की दूरी पर पत्थर तोड़ने के लिए विस्फोट करना शुरू कर दिया है। इससे मंदिर की दीवारों में दरारें, और श्रद्धालुओं के मन में पीड़ा बढ़ती जा रही है। लोगों का कहना है कि अब मंदिर के पास खड़े होकर प्रार्थना करने में भी डर लगता है।
“आस्था का केंद्र, अब असुरक्षा का प्रतीक”
एक बुजुर्ग श्रद्धालु भावुक होकर कहते हैं, “माँ बंजारी ने हमें हमेशा संबल दिया, लेकिन आज हम उन्हें बचा नहीं पा रहे।” विस्फोटों की वजह से पास के कई मकानों को भी नुकसान हुआ है और रोज़ाना मुख्य मार्ग को बंद कर देने से आम लोगों की जिंदगी अस्त-व्यस्त हो गई है।
मंदिर समिति की चुप्पी —
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अचंभित करने वाली बात यह है कि मंदिर समिति पूरी तरह से मौन है। वह संस्था, जो वर्षों से मंदिर की मरम्मत, आयोजन और परंपराओं की रक्षा करती आई है, आज मंदिर की सुरक्षा को लेकर एक भी सार्वजनिक बयान नहीं दे रही।
यह चुप्पी किस दबाव में है, ये बड़ा सवाल है।”
नियमों का खुला उल्लंघन जारी
विस्फोटक अधिनियम, पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन अधिसूचना और भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के दिशा-निर्देशों के अनुसार धार्मिक स्थलों के समीप विस्फोट करना न केवल गैरकानूनी, बल्कि खतरनाक भी है। इसके बावजूद डीबीएल कंपनी बेखौफ निर्माण कार्य कर रही है।
अब लोगों की आस्था पुछ माँ बंजारी की शांति को भंग करने वालों पर कब होगी कार्रवाई? और मंदिर समिति की चुप्पी आखिर क्या संकेत देती है?
आस्था, श्रद्धा और न्याय — तीनों की अग्निपरीक्षा का समय आ गया है।