राजतंत्र को ओर बढ़ता जनतंत्र? माननीयों को पुलिसिया सलामी का आदेश
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*चैतन्य मिश्रा

अनूपपुर । मध्य प्रदेश पुलिस को डीजीपी के आदेशानुसार अब सांसदों और विधायकों को सलामी देने का निर्देश जारी हुआ है। नया सर्कुलर कहता है कि माननीयों को पुलिस द्वारा सल्यूट किया जाएगा। सवाल यह उठता है कि क्या सम्मान भी आदेश से प्राप्त होगा? क्या लोकतंत्र में अब नेताओं के सम्मान के लिए फरमान जारी करने की जरूरत पड़ गई है? जब नेता खुद अपने सम्मान के लिए आदेश लाने पर उतर आएं, तब यह जनतंत्र के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रश्नचिन्ह है। पुलिस जो संविधान और कानून की रक्षा के लिए वर्दी पहनती है, उसका दायित्व जनसेवा है, न कि सत्ता के प्रतीकों को सलामी देना। ऐसे में पुलिस अफसरों को जबरन सल्यूट करने का निर्देश, उनकी स्वायत्तता और गरिमा दोनों पर आघात है।ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शराब या रेत माफिया को बचाने वाले विधायकों ओर सांसदों भी सलामी के हकदार होंगे?
क्या दागदार छवि वाले जनप्रतिनिधियों को भी वही सम्मान मिलेगा, जो एक ईमानदार को मिलना चाहिए?
क्या इस आदेश से पुलिस कर्मियों के भीतर सम्मान का भाव जन्म लेगा या केवल औपचारिकता निभेगी?इन सवालों के जवाब साफ हैं। सम्मान अर्जित किया जाता है, थोपा नहीं जाता। लोकतंत्र की आत्मा यह कहती है कि जनप्रतिनिधि जनता के सेवक होते हैं, स्वामी नहीं। यदि सेवा भाव से, चरित्र बल से, और समर्पण से जनप्रतिनिधि कार्य करें, तो जनता और पुलिस दोनों का सम्मान स्वभावतः प्राप्त होगा। आदेशित सम्मान मात्र खोखली औपचारिकता पैदा करेगा, जो भीतर से सम्मान नहीं, अविश्वास ही बढ़ाएगा।नेताओं को यह समझना होगा कि सलामी से नहीं, सेवा से प्रतिष्ठा मिलती है। सम्मान वर्दी को झुकाकर नहीं, चरित्र को ऊंचा करके पाया जाता है।यदि हम इस प्रवृत्ति का विरोध नहीं करते, तो वह दिन दूर नहीं जब लोकतंत्र एक तमाशा बन जाएगा, जहां राजा सलामी लेंगे और जनता मजबूरी में सिर झुकाएगी ।लोकतंत्र में असली सलामी उसी को मिलती है जो जनता का सच्चा सेवक हो।