पर्यावरण एवं पर्यटन धरोहर केंद्र:- 32
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भगवान श्री राम के वनवास काल का चौमासा स्थल-
“छतौड़ा आश्रम”
बीरेन्द्र श्रीवास्तव की कलम से

संभाग ब्यूरो दुर्गा गुप्ता
छत्तीसगढ़ का उत्तरांचल क्षेत्र अपने प्राकृतिक संसाधन नदियां पहाड़ की अद्वितीय सुंदरता के साथ विद्यमान है. इनके बीच सधन साल वनों का सतपुड़ा का आंचल फैलाए विंध्याचल और मैकल की पहाड़ियों को जगह जगह घेरती चलती है. इन्ही पहाड़ियों की तराई में पनपती सतपुड़ा के जंगलों से परिपूर्ण अमरकंटक पहाड़ी से नर्मदा, सोन एवं जोहिला जैसी पवित्र नदियाँ अपनी छोटी-छोटी जल धाराओं के साथ जन्म लेती है. इन्हीं नदियों के बहाव की अठखेलियाँ जहाँ बालिका स्वरूप नदियों के दर्शन कराती है वहीं साथ साथ पनपते आसपास घने जंगलों का आकर्षण इसे और सुंदर बनाता है. उत्तरी छत्तीसगढ़ के क्षेत्र में बसा वर्तमान सरगुजा संभाग जो मध्य प्रदेश के समय में सरगुजा जिला कहलाता था प्रकृति की अनुपम देन है. छत्तीसगढ़ में भगवान राम की यात्रा पर शोध करने वाले डॉ. मन्नू लाल यदु की पुस्तक “छत्तीसगढ़ में बनवासी राम” के अनुसार सरगुजा का यह अंचल प्राकृतिक सुंदरता का ऐसा केंद्र था जिस पर देवता निवास करते थे. इसके ऐतिहासिक पन्नो को पलटने पर यह दंडकारण्य का देवभूमि क्षेत्र कहलाता था. प्रकृति की अनुपम कृति से पूरित इसकी प्राकृतिक सुंदरता जहां इसे प्रारंभ से ही ऋषि मुनियों और देवताओं सहित इंद्र के निवास योग्य बनाती थी, वही शंबरासुर एवं अन्य असुर भी इस पर अधिकार करने हेतु लालायित रहते थे. शंबरासुर के राज्य क्षेत्र की सीमा से जुड़े होने के कारण असुर बार-बार ऋषि मुनियों के यज्ञ स्थल एवं तपस्थली को नष्ट करने की कोशिश करते रहते थे. ऋषियों के आश्रम एवं यज्ञ स्थल को नष्ट कर वे वापस असुरों के राज्य में चले जाते थे. असुरों की इन्हीं गतिविधियों के करण ऋषि मुनियों द्वारा धर्म की स्थापना के लिए लगाए गए पुकार सुनकर पृथ्वी एवं मानव का पालन करने वाले ईश्वर अर्थात श्री विष्णु जी को भगवान श्री राम के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेना पड़ा.

रामायण कॉल की जानकारी में यह तथ्य स्पष्ट रूप से प्रमाणित है कि उस समय अयोध्या के निकट बहने वाली सरयू नदी के उत्तर में उत्तर कौशल क्षेत्र एवं दक्षिण में दक्षिण कौशल क्षेत्र कहलाता था. उत्तर कौशल अयोध्या के राजा दशरथ का क्षेत्र था तथा दक्षिण कौशल पर भगवान राम के नाना भानुवंत का का राज्य था, जो कई बदलाव के बाद आज छत्तीसगढ़ का हिस्सा बना है. इस तरह भगवान राम को अयोध्या क्षेत्र के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के दक्षिण कौशल को भी असुरों से विहीन कर धर्म और न्याय स्थापित करना उनका कर्तव्य था.
कई ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा यह सरगुजा क्षेत्र का पूर्वी भाग सीधी प्रांत से प्रारंभ होकर सरगुजा के सामरी पाट से उड़ीसा एवं झारखंड तक फैला शंबरासुर के डाडौर राज्य का हिस्सा था. अपनी विस्तार नीति एवं सुंदरता के कारण वह पश्चिम सरगुजा क्षेत्र पर अधिकार करने हेतु आक्रमण कर देवतुल्य ऋषि मुनियों को हटाने की नई – नई योजनाए बनाता रहता था. तृतीय देवासुर संग्राम भी सरगुजा अंचल के कोरिया एवं वर्तमान मनेन्द्रगढ़ के आसपास की प्राकृतिक सुंदरता एवं संपन्नता के कारण ही हुआ था. इस युद्ध में देवताओं द्वारा अयोध्या के राजा दशरथ से उनकी सेना सहित सहयोग मांगा गया था. यह वही युद्ध था जिसमें लड़ाई के दौरान राजा दशरथ घायल हुए थे और उनकी सारथी कैकई उनके प्राण बचाकर युद्ध से निकाल लाई थी.

छत्तीसगढ़ में भगवान राम के आगमन का साक्षी स्थल सीतामढ़ी हरचौका मवई नदी के किनारे स्थित है, जहां मुनिवेश धारी भगवान राम चित्रकूट से आगे की यात्रा करके दंडकारण की देवभूमि में पहुंचे थे. यहां कुछ समय बिता कर अपने इष्ट देव भगवान शिव के 12 शिवलिंगों की स्थापना कर उनसे आशीर्वाद मांगा था आगे त्रिकाल संध्या आरती के लिए रापा नदी के तट पर घघरा सीतामढ़ी गुफा में शिवलिंग की स्थापना कर पड़ाव डाला था. यहाँ कुछ दिन विश्राम करके देव एवं ऋषियों को भय मुक्त करने के उद्देश्य से आगे बढ़ते हुए छतौडा़ पहुंचे. असुरों को समाप्त करने की योजना को मूर्त रूप देने हेतु ऋषि मुनियों की तपस्थली केन्द्र मे ही चौमासा बिताने का निर्णय लिया. छतौडा़ गांव में आज भी यह आध्यात्मिक विरासत विद्यमान है.
वर्तमान नेउर नदी के तट पर बसे छतौडा़ ग्राम मे बने छतौड़ा आश्रम से कुछ दूरी पर मुर्किल गांव का इलाका प्रारंभ हो जाता है. इसके आगे गोपद नदी पार करते ही अंतिम ग्राम गोइनी के बाद मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले और बैढ़नकी सीमा प्रारंभ हो जाती है. इसी अंतिम गांव के आगे गोपद नदी अलग-अलग राज्यों का बंटवारा करती है जो प्राचीन समय के त्रेता युग में डाडौर का सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण असुरों का ज्यादा प्रभाव था. यही से असुर ऋषि मुनियों पर आक्रमण और अत्याचार के बाद वापस अपने क्षेत्र में सुरक्षित पहुंच जाते थे. अतः भगवान राम को यहां से असुरों की पूरी जानकारी ऋषि मुनियों से प्राप्त करने के लिए छतौडा़ आश्रम में अपना चौमासा बिताने का निर्णय लेना पड़ा.

जमीन के नीचे पत्थरों की चट्टानों से दो कमरानुमा गुफाओं से बना यह छतौडा़ आश्रम का काफी हिस्सा वर्तमान में टूट चुका है. इसके मध्य स्थल में खुली जगह ईश्वर की आराधना स्थल के रूप में उपयोग की जाती रही होगी. इसी खुले स्थल पर अयोध्या से लाए गए संगमरमर के पत्थरों पर उकेरे भगवान राम के चरण चिन्ह प्रतीक रूप में रखे गए हैं. जिसमें भगवान राम केपैरों में पदम् शंख, गदा के प्रतीक से विष्णु भगवान के अवतरण की याद दिलाते हैं. धन्य है वह धरती का स्थल जहां भगवान राम के चरण पड़े थे. इस गांव के निवासी भी अपने आप को धन्य मानते हैं. बाहर के हिस्से में छोटे भाई लक्ष्मण की बैठक सिला दिखाई पड़ती है, जहां का ऊपरी हिस्सा एवं सामने बने मंदिर के दो पिलर टूट चुके हैं. जिससे यह स्थल अब छोटा दिखाई पड़ता है. इसी आश्रम के सामने विशाल पीपल का वृक्ष अपने अंत में पत्थरों की कुछ सिलाओ के साथ कुछ यादों को समेटे हुए हैं. इसके बारे में गांव वालों की अलग-अलग धारणाएं हैं. समय के परिवर्तन एवं ग्राम वासियों के अनुसार बुजुर्गों का कहना है कि 50 साल पहले आए एक भूकंप ने इस आश्रम के कई हिस्सों को नष्ट कर दिया. छतौडा़ आश्रम के एक हिस्से में एक छोटी सी ओखली (धान कूटने के लिए बनी हुई) की उपस्थिति इसे सीता माता की रसोई से जोड़ती है. पिछले सात पुस्तो से गाँव के निवासी जवाहर लाल कहते हैं कि हम धन्य है जो भगवान राम के तीर्थ में उनकी चरण स्थल की गुफाओं की सेवा कर रहे हैं. समय-समय पर इस आश्रम की सेवा के लिए आने वाले संतों की सेवा करके भी हम अपने आप को धन्य महसूस करते हैं. राम वन गमन मार्ग के विभिन्न स्मृति स्थल में शामिल सीतामढ़ी
हरचौका केंद्र सरकार के क्रमांक 70 , घघरा सीतामढ़ी केंद्र क्र. 71 एवं सीतामढ़ी छतौडा़ केंद्र क्रमांक 72 के रूप में केन्द्र सरकार के विकास परिपथ में दर्ज है. जो इसके विकास की संभावनाओं को इंगित करता है. सीतामढ़ी हरचौका, घघरा सीतामढ़ी एवं सीतामढ़ी छतौड़ा आश्रम की गुफाओं में एक समानता नजर आती है कि यहाँ निर्मित सभी गुफाएं धरती के नीचे की चट्टानों के बीच हल्के पीले रंग के बलुआ पत्थर की चट्टानों को काटकर बनाई गई है.

.. छतौड़ा आश्रम वर्तमान समय में नेउर नदी के पुल के मार्ग से लगभग 9 किलोमीटर दूर है. इतिहास गवाह है कि भूमि के हिलने से समय के अनुसार नदियां भी मार्ग बदलती रहती हैं. गुफा के आसपास की बलुवा मिट्टी के खेत यहां पहले किसी नदी के कछार होने की कहानी कहते हैं. संभवत नेउर नदी का कछार या उसकी सहायक नदियां इस क्षेत्र से होकर गुजरी होगी. यहां के आश्रम के ढलान क्षेत्र में उपका पानी का एक जल स्रोत (जमीन की सतह पर दबाव के साथ ऊपर निकलता पानी) का लगातार दो-तीन इंच निकलता पानी एक छोटे जल स्रोत को जन्म देता है. इसे ग्रामवासी छतौड़ा का जिंदा नाला कहते हैं क्योंकि इसमें बारहों महीने पानी बहता रहता है, जो ग्रामीणों के निस्तार के काम आता है. ग्रामीणों की बाड़ी में खोदे गए कुएं एवं हैंड पंप में कम गहराई पर पर्याप्त जल स्तर का मिलना इसी जिंदा नाले के कारण ही उपलब्ध है.

छतौडा़ ग्राम आसपास कई पहाड़ियों से घिरा है उत्तर में बम्हना पहाड़, पश्चिम में बम्हनी पहाड़ी तथा उत्तर में बाँसिन पहाड़ से घिरा हुआ है. ग्रामीणों के अनुसार बाँस की बहुतायत के कारण इसका नाम बासिन पहाड़ था. पूरे बांस काटकर पेपर फैक्ट्री अमलाई पेपर मिल वाले ले गए. वन विभाग भी इस बाँस के जंगल को फिर से बाँस का जंगल बनाने के प्रति उदासीन है. जंगली जानवरों की पनाह के लिए बनाया गया गुरु घासीदास अभ्यारण की पहाड़ियों में अब जंगली जानवर भी कम ही रह गए हैं . भालू, सूअर हिरण, खरगोश,और बंदर इन पहाड़ियों पर मिलते हैं. शेर अभ्यारण्य की जानकारी पर ग्राम वासियों ने कहा कि पिछले दिनों यहां से 20 किलोमीटर दूर कटवार गांव के जंगलों के पास शेर मरा हुआ मिला था. घासीदास राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा होने के कारण खिरकी ग्राम से वन विभाग द्वारा बैरियर लगाकर प्रवेश निगरानी द्वार स्थापित किया गया है. अवैध शिकार एवं परिवहन पर यहाँ से अंकुश लगाने का प्रयास किया जाता है. अभ्यारण में प्रवेश करने का यह मनेन्द्रगढ़ जिले का अधिकृत द्वार है. यहां प्रवेश द्वार पर परिवहन गाड़ियों को छोटे से शुल्क का भुगतान कर आपकी संपूर्ण जानकारी ली जाती है. एवं आवश्यकता अनुसार ही अभ्यारण क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है.

वनवास काल में भगवान राम के मनेन्द्रगढ़ जिले के अंतिम पड़ाव स्थल छतौड़ा आश्रम तक पहुंचने के लिए आपको मनेन्द्रगढ़ मुख्यालय जिला पहुंचना होगा. पक्की सड़क से मनेन्द्रगढ़ से कठौतिया 9 किलोमीटर की दूरी तय कर चौराहे से उत्तर दिशा में छत्तीसगढ़ राज्य मार्ग क्रमांक 08 से (पेंड्रा से जनकपुर मार्ग) जनकपुर तक पहुंचना होगा. आगे जनकपुर से कोटाडोल मार्ग पर (नेउर नदी पुल पार करके) लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर छतौड़ा ग्राम पहुंचते हैं इसी गांव में कोटा ढोल से 9 किलोमीटर की दूरी पर यह छतौड़ा आश्रम स्थित है. सड़क किनारे लगे हुए छतौड़ा आश्रम संकेत बोर्ड के पास वर्तमान में जिओ कंपनी का मोबाइल टावर लगा दिया गया है, जो छतौड़ा आश्रम तक पहुंचने का प्रमाणित स्थाई प्रतीक स्थल बन गया है.

श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार पृथ्वी पर जब-जब संकट आया है तब तब भगवान बिष्णु ने अलग-अलग रूप में अवतार लेकर पृथ्वी को बचाया है. रावण एवं अन्य असुरों का अन्याय समाप्त करने तथा धर्म की स्थापना करने त्रेता युग में भगवान राम ने मानव अवतार लिया. न्याय एवं धर्म की स्थापना के लिए संघर्ष करने वाले भगवान राम की वनवास यात्रा के यह स्थल हमें उनके मानवीय चरित्र की मर्यादा संघर्ष एवं सामाजिक आचरण के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहेंगे.

आध्यात्मिक ग्रंथ पवित्र रामायण के अनुसार त्रेता युग के भगवान राम के गाथाओं का यह साक्ष्य स्थल छतौड़ा आश्रम उनके चरण धूलि लेने एवं उनकी स्मृतियों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेने हेतु एक पवित्र स्थल है. यहां पहुंचकर आप भी आध्यात्मिक ईश्वरीय चेतना से जुड़ेंगे और भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे.
बस इतना ही
फिर मिलेंगे किसी अगले पड़ाव पर
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