पाराघाटी बालिका छात्रावास: जहाँ ‘बेटी बचाओ’ के नारे, ‘बेटी रुलाओ’ का कड़वा सच बन गए! इंचार्ज के आतंक से खामोश 47 बेटियां
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पाराघाटी, धर्मजयगढ़ (रायगढ़) | विशेष मार्मिक रिपोर्ट, 29 मई, 2025 – रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़ विकासखंड में स्थित शासकीय प्री-मैट्रिक कन्या छात्रावास पाराघाटी। यह कोई सामान्य छात्रावास नहीं, यह अहंकारी सिस्टम की अंधी कोठरी है, जहाँ सरकार के करोड़ों के फंड, मासूम बेटियों के भविष्य को निगलने के लिए मगरमच्छ बन बैठे हैं। यहाँ की हालत इतनी भयावह है कि इसे देखकर पत्थर दिल भी रो पड़े, लेकिन प्रशासन के कलेजे पर जूं तक नहीं रेंगती। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा यहाँ आकर ‘बेटी रुलाओ, बेटी मिटाओ’ का कड़वा सच बन गया है।

इंचार्ज का खौफ: डरी-सहमी बेटियां, जुबान पर लगा ताला
इस पूरी त्रासदी की सबसे दुखद परत यह है कि छात्रावास में रहने वाली मासूम बेटियां हॉस्टल इंचार्ज के खौफ में जी रही हैं। उन्हें इस कदर डराया-धमकाया जाता है कि वे अपनी जुबान खोलने से भी डरती हैं। उनके दिल में अनगिनत शिकायतें, तकलीफें और डर दफन हैं, पर किसी से बयां करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं।
जब कभी कोई अधिकारी या जांच टीम छात्रावास का दौरा करती है और बच्चों से सुविधाओं या समस्याओं के बारे में पूछती है, तो इंचार्ज का डरावना चेहरा उनकी आंखों के सामने घूम जाता है। डर के मारे उनकी हिम्मत नहीं होती कि वे हॉस्टल इंचार्ज के खिलाफ एक शब्द भी बोल सकें, या अपनी वास्तविक पीड़ा उजागर कर सकें। यह हॉस्टल इंचार्ज द्वारा अपनी सत्ता का घोर दुरुपयोग और बच्चों के भविष्य को बंधक बनाने जैसा है, जो सीधे तौर पर बाल अधिकारों का उल्लंघन है।
जहर बुझे तीर: हर कोने में मौत का इंतज़ार, हमारी लाडली बेटियों के लिए
भवन: ‘स्वर्ग’ का वादा, ‘नरक’ की तस्वीर
जब सरकार कहती है कि हम बेटियों के लिए स्वर्ग बना रहे हैं, तो जरा पाराघाटी आइए! यहाँ की दीवारें रो रही हैं, प्लास्टर ऐसे झर रहा है जैसे कोई बूढ़ी मां अपने आंसू बहा रही हो। हर दरार से मौत झांक रही है, और हम आस लगाए बैठे हैं कि कोई ‘विकासपुरुष’ आएगा और इन दरारों को अपने ‘फोटोसेशन’ से भर देगा। क्या इसी मौत के साए में हमारी बेटियां अपना भविष्य लिखेंगी?
शौचालय: ‘स्वच्छ भारत’ का वो गंदा मजाक
‘स्वच्छ भारत अभियान’ की धूम पूरे देश में है, लेकिन पाराघाटी के शौचालय शायद किसी ‘अदृश्य शक्ति’ के ‘अस्वच्छ मिशन’ का हिस्सा हैं। बदबू ऐसी कि आत्मा हिल जाए। दरवाजे टूटे हुए, गंदगी का अंबार। हमारी लाडली बेटियां, जिन्हें रानी बनाकर रखना चाहिए था, वे खुले में शौच को मजबूर हैं। शर्म आती है हमें, इस ‘स्वच्छ भारत’ के नाम पर! क्या इन बेटियों की गरिमा का कोई मोल नहीं, साहब?
बिस्तर: जब ‘आराम’ ही ‘अधमरा’ कर दे
जिन बिस्तरों पर ये फूल-सी बच्चियां सोती हैं, वे इतने सड़े हुए हैं कि देखकर लगता है, मानो इन्हें पिछली सदी के कूड़ेदान से उठाकर लाया गया हो। बड़े-बड़े गड्ढे, कीड़े-मकोड़ों का साम्राज्य। यह सिर्फ नींद खराब करना नहीं, यह तो बीमारियों का सरकारी न्योता है! क्या हमारे अधिकारी अपने बच्चों को ऐसे बिस्तरों पर सुला सकते हैं? या ये गरीब की बेटियां हैं, इनके लिए तो कुछ भी चलेगा?

भोजन: पोषण के नाम पर ‘भूख’ का दान, इंचार्ज की थाली में ‘मलाई’
मेनू चार्ट: सपनों का पुलिंदा, जो कभी सच नहीं होता
छात्रावास की दीवार पर एक रंगीन ‘मेनू चार्ट’ चिपका है। वाह! क्या सब्जियां, क्या दालें, क्या मिठाइयां! लगता है किसी ‘फाइव स्टार’ होटल का मेनू है। लेकिन यह सिर्फ बेटियों को ‘सपने दिखाने’ के लिए है, हकीकत में तो यह ‘कागजी ताजमहल’ है, जो कभी बनता ही नहीं।
47 बच्चियों के लिए 2 किलो आलू: पेट नहीं, आँखें भर आती हैं
आपकी आँखें नम न हों तो कहिएगा… 47 भूखी बेटियों के लिए मात्र 2 किलो आलू, थोड़ा सा तेल और 3-4 किलो चावल! यही है उनका पूरा दिन का भोजन। यह भोजन नहीं, यह तो भूख का ‘सरकारी प्रसाद’ है! ये बेटियां भारत का भविष्य हैं, क्या इन्हें इसी ‘कुपोषण’ से लड़कर आगे बढ़ना है? लाखों का बजट आखिर किस ‘पेट’ में समा रहा है? क्या हॉस्टल इंचार्ज की थाली में इन बेटियों की ‘भूख’ की ‘मलाई’ उतर रही है?

संपर्क नंबर मिटाना: शिकायत नहीं, अस्तित्व मिटाने की आपराधिक साजिश!
सबसे घिनौनी बात यह है कि छात्रावास के सूचना पट्ट से वरिष्ठ अधिकारियों के संपर्क नंबर ‘गायब’ कर दिए गए हैं। शायद उन्हें डर है कि बेटियां शिकायत कर देंगी, पोल खुल जाएगी। यह सिर्फ नंबर मिटाना नहीं, यह तो बेटियों की आवाज़ को मिटाने की, उनके अस्तित्व को दबाने की ‘सरकारी साजिश’ है! जब मदद मांगनी हो तो किससे मांगें? क्या अब इन्हें सीधे मुख्यमंत्री आवास पर पत्र लिखना पड़ेगा?
कहां हैं जिम्मेदार अधिकारी? हॉस्टल इंचार्ज की तत्काल गिरफ्तारी क्यों नहीं?
हॉस्टल इंचार्ज: ‘सरकारी शैतान’ या ‘भगवान का दूत’?
छात्रावास की इंचार्ज महोदया, आप क्या कर रही हैं? क्या आपकी अंतरात्मा मर चुकी है? क्या इन मासूमों की भूख, तकलीफ और खौफ आपको दिखाई नहीं देता? या आप भी इस ‘महाघोटाले’ की ‘महानायिका’ हैं? इनकी खामोशी और निष्क्रियता मात्र उदासीनता नहीं, यह सीधे तौर पर इन अमानवीय परिस्थितियों के लिए उनकी व्यक्तिगत और आपराधिक जवाबदेही तय करती है। इन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर, बेटियों के भविष्य से खिलवाड़ के लिए सलाखों के पीछे धकेलना चाहिए।
जिला प्रशासन: बहरे कान, अंधी आंखें नहीं, संवेदनहीनता के ‘सरकारी पुतले’!
जिला कलेक्टर, शिक्षा अधिकारी, और तमाम बड़े साहब कहां गायब हो जाते हैं जब हमारी बेटियों का सवाल आता है? क्या उनके बच्चे भी इसी हालत में रहते हैं? नहीं न! तो फिर यह भेदभाव क्यों? यह अक्षमता नहीं, यह सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की घोर संवेदनहीनता और कर्तव्य के प्रति विमुखता का प्रमाण है। क्या इन्हें सिर्फ ‘मीटिंग’ और ‘समीक्षा’ में ही फुर्सत मिलती है?
नेताजी की चुप्पी: वोटों के सौदागर, बेटियों के ‘दुश्मन’?
चुनाव के समय घर-घर जाकर बेटी बचाओ के नारे लगाने वाले नेता अब कहां हैं? उनके लिए ये बेटियां सिर्फ वोट का साधन हैं या इंसान भी? क्या इन बेटियों की आंखों के आंसू उन्हें अगले चुनाव में याद नहीं आएंगे?
यह सिर्फ छात्रावास नहीं, यह व्यवस्था की कब्रगाह है, एक आपराधिक négligence का काला अध्याय है
पाराघाटी छात्रावास केवल एक इमारत नहीं है, यह हमारी व्यवस्था का आईना है। यह दिखाता है कि:
- गरीब की बेटी का कोई मोल नहीं, वे सिर्फ आंकड़े हैं, जिस पर नेता बयानबाजी करते हैं।
- सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर ‘शानदार’ दिखती हैं, हकीकत में वे भ्रष्टाचार का ‘पेट’ भरने का जरिया हैं।
- भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि मासूमों का भविष्य भी सुरक्षित नहीं, बल्कि दांव पर है।
- जवाबदेही से कैसे बचा जाता है, यह पाराघाटी में ‘लाइव डेमो’ के रूप में देखा जा सकता है।

अब बहुत हो गया: फूटेगा जनता का गुस्सा, इंचार्ज पर तत्काल आपराधिक कार्रवाई हो!
तत्काल मांगें:
- हॉस्टल इंचार्ज का तुरंत निलंबन और आपराधिक मामला दर्ज कर गिरफ्तारी: उनकी लापरवाही, भ्रष्टाचार में संलिप्तता, बच्चों को डरा-धमकाकर चुप कराने और छात्राओं के स्वास्थ्य व सुरक्षा से खिलवाड़ के लिए उन पर भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तहत तत्काल कार्रवाई हो। उन्हें जेल में ठूंसा जाए!
- उच्चस्तरीय न्यायिक जांच समिति का गठन – 48 घंटे में: इस पूरे मामले की गहन और निष्पक्ष न्यायिक जांच की जाए, जिसमें दोषियों को बेनकाब कर सलाखों के पीछे धकेला जा सके। यह जांच बालिकाओं से भयमुक्त माहौल में सीधे बातचीत कर, हॉस्टल इंचार्ज की अनुपस्थिति में होनी चाहिए।
- भवन का आपातकालीन मरम्मत कार्य और तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था: छात्राओं को तुरंत सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित किया जाए और छात्रावास का युद्धस्तर पर जीर्णोद्धार किया जाए।
- भोजन घोटाले की एफआईआर: भोजन के फंड में हुई अनियमितता और छात्राओं को कुपोषित करने के मामले में एफआईआर दर्ज कर दोषियों को दंडित किया जाए।
- वरिष्ठ अधिकारियों की जवाबदेही तय: इस पूरे प्रकरण में उच्च अधिकारियों की भूमिका की जांच कर उनकी जवाबदेही तय की जाए।
चेतावनी: अब और इंतजार नहीं
यदि 7 दिन में ठोस और दृश्यमान कार्रवाई नहीं हुई तो:
- जिला कलेक्टर कार्यालय का विशाल घेराव
- अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल और सड़क जाम, जब तक न्याय नहीं मिलता
- मुख्यमंत्री और राज्यपाल को सीधा ज्ञापन सौंपकर न्याय की मांग, उनके दरवाजे पर दस्तक दी जाएगी
- सभी सामाजिक संगठनों का एकजुट आंदोलन, जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी, सड़कें गूंज उठेंगी!
आखिरी बात
- यह सिर्फ 47 बच्चियों का मामला नहीं है। यह हमारी सभ्यता, हमारी मानवता और हमारे भविष्य का सवाल है। आज अगर हमने आवाज नहीं उठाई, तो कल हमारी बेटियां हमसे सवाल करेंगी – ‘पापा, जब आपको पता था कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है, जब हमें डराकर चुप कराया जा रहा था, तब आपने कुछ क्यों नहीं किया? क्या हमारी भूख और हमारे आँसू आपको भी दिखाई नहीं दिए?’
- पाराघाटी की इन 47 बेटियों की आवाज बनिए। शेयर करिए, आवाज उठाइए, प्रशासन को जगाइए! उनकी आत्मा को झकझोर दीजिए!
उद्घोष समय न्यूज़ रिपोर्ट | फॉलो करें हमारे सोशल मीडिया पर अपडेट के लिए
- यह रिपोर्ट जमीनी हकीकत पर आधारित है। हमारी टीम लगातार इस मामले पर नजर रखे हुए है।
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