जोगपाल पब्लिक स्कूल में बैसाखी का भव्य आयोजन: सांस्कृतिक गौरव और ऐतिहासिक चेतना का जीवंत प्रदर्शन
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पत्थलगांव: जोगपाल पब्लिक स्कूल, पत्थलगांव में आज, शनिवार, 12 अप्रैल, 2025 को बैसाखी का पावन पर्व अत्यंत उत्साह और पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया। विद्यालय प्रांगण छात्र-छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किए गए रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जीवंत हो उठा।

विद्यालय के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने बैसाखी की भावना को साकार करते हुए विशेष रूप से आकर्षक सजावट की थी। वृक्षों, लहलहाते खेतों और पारंपरिक मेलों की मनमोहक पृष्ठभूमि ने उत्सव के माहौल को और भी सुंदर बना दिया था।
कार्यक्रम का शुभारंभ एक भव्य ‘नगर कीर्तन’ (जुलूस) के साथ हुआ, जिसमें ‘वाहेगुरु’ के पवित्र नाम का जाप करते हुए वातावरण भक्तिमय हो गया। इस शोभा यात्रा का नेतृत्व सिख समुदाय में सर्वोच्च सम्मान प्राप्त ‘पंज प्यारे’ ने किया। ‘पंज प्यारे’ के नेतृत्व ने सार्वभौमिकता, भाईचारे और एकता के महत्वपूर्ण संदेश को साकार किया। विद्यार्थियों ने गुरु ग्रंथ साहिब के पवित्र पाठ का आयोजन कर विशेष पूजा और अरदास में भाग लिया।

बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व:
इस अवसर पर बैसाखी के ऐतिहासिक महत्व पर भी प्रकाश डाला गया। बताया गया कि प्रकृति के शाश्वत नियम के अनुसार, जब अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँचता है, तो उसका निवारण भी अवश्य होता है। इसी क्रम में, मुगल शासक औरंगजेब के अन्याय और अत्याचार की पराकाष्ठा के बाद, जब श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली के चाँदनी चौक पर शहीद कर दिया गया, तब गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की। इस पंथ का एकमात्र लक्ष्य धर्म और भलाई के आदर्शों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना था।

सदियों की राजनीतिक और मानसिक गुलामी के कारण कमजोर और साहसहीन हो चुके लोगों में नया जीवन संचारित करने के उद्देश्य से, गुरु गोविंद सिंह जी ने निम्न जाति के माने जाने वाले लोगों को, जिन्हें समाज तुच्छ दृष्टि से देखता था, अमृत छकाकर ‘सिंह’ बनाया। इस ऐतिहासिक क्षण को “वाह वाह गोबिंद सिंह आपे गुरु चेला” के रूप में अमर किया गया, जिसका अर्थ है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वयं गुरु रूप में पांच प्यारों को अमृत प्रदान किया और फिर शिष्य बनकर उन पांच प्यारों से अमृत ग्रहण किया। इस प्रकार, 13 अप्रैल, 1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार का अंत किया।

गुरु गोविंद सिंह जी ने सभी जातियों के लोगों को एक ही अमृत पात्र (बाटे) से अमृत चखाकर ‘पंज प्यारे’ सजाए। यह पाँच प्यारे किसी एक जाति या स्थान से नहीं थे, बल्कि विभिन्न जातियों, कुलों और स्थानों से थे, जिन्हें ‘खंडे बाटे’ का अमृत चखाकर उनके नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द जोड़ा गया, जो समानता और साहस का प्रतीक बना।

मनोरम सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ:
कार्यक्रम में सिख समुदाय की पारंपरिक मार्शल आर्ट ‘गतका’ का शानदार प्रदर्शन हुआ, जिसने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। इसके अतिरिक्त, विद्यार्थियों ने ऊर्जा और उत्साह से भरपूर पंजाबी नृत्य ‘भांगड़ा’ और एक प्रेरणादायक नाटक का भी बेहतरीन प्रदर्शन किया।

स्कूल के डायरेक्टर, श्री सरणजीत सिंह भाटिया जी ने इस अवसर पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि बैसाखी का पर्व हमें अपने समृद्ध सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं से जुड़ने का महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से बच्चों में सामाजिकता, एकता और सहिष्णुता जैसे महत्वपूर्ण मानवीय गुणों का विकास होता है। श्री भाटिया जी ने सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों को हार्दिक बधाई दी।

कार्यक्रम के अंत में, बच्चों ने विद्यालय के थिएटर रूम में बैसाखी के उपलक्ष्य में विशेष रूप से तैयार की गई फिल्म का आनंद लिया। इस दौरान, थिएटर का माहौल और भी खुशनुमा हो गया, जब बच्चों को पॉपकॉर्न और शीतल पेय (रूह अफ़जा और खस खस) परोसे गए, जिसकी विशेष व्यवस्था विद्यालय द्वारा की गई थी।
इस भव्य और प्रेरणादायक कार्यक्रम में विद्यालय के डायरेक्टर, श्री सरणजीत सिंह भाटिया जी, एडमिनिस्ट्रेटर, श्री मनजोत सिंह भाटिया जी, सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। इस प्रकार, जोगपाल पब्लिक स्कूल में बैसाखी का यह पर्व अत्यंत उत्साह और सफलता के साथ संपन्न हुआ, जिसने सभी के मन में अपनी संस्कृति और इतिहास के प्रति गर्व की भावना को और मजबूत किया।
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